कपॉट शेयर वो शेयर है जो लंबी अवधि में तो शानदार मुनाफा देते ही हैं,
छोटी अवधि में भी निवेशकों को शानदार रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं।
यानि, मजबूत फंडामेंटल वाले ऐसे शेयर जिसमें आगे अच्छी तेजी की उम्मीद है।
कंपनी 1972 से टायर उत्पादन और बिक्री के काम में है और देश में रेडियल टायर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल है। ट्रक टायर मार्केट का कंपनी में 25 फीसदी हिस्सा है। कंपनी ने 2006 में दक्षिण अफ्रीका में डनलप टायर्स खरीदा है। वहीं 2009 में हालैंड की व्रेडेस्टिन बेंडेन(Vredestein Banden) नाम की कंपनी खरीदी है। कंपनी ने 2015 में हंगरी में बड़ा प्लांट लगाया है और 2016 में जर्मनी की रेफेंकॉम(Reifencom) को खरीदा है।
कंपनी के पास चार टायर ब्रांड हैं। अपोलो, दुनियाभर में बिकने वाला पॉपुलर ब्रांड है। व्रेडेस्टिन टायर का प्रीमियम ब्रांड है। कंपनी काइज़ेन, रीगल नाम के बस और ट्रक के टायर बनाती है। कंपनी के केरल, तमिलनाड़ और गुजरात में प्लांट है। वहीं यूरोप में हंगरी और हॉलैंड में भी प्लांट है। अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और एशिया में कंपनी के सेल्स ऑफिस हैं। 100 से अधिक देशों में कंपनी के टायर बिकते हैं। भारत में कंपनी के 4900 से ज्यादा डीलर है और यूरोप में 3550 से ज्यादा डीलर है।
वित्त वर्ष 2016 में कंपनी की बिक्री 11700 करोड़ रुपये और मुनाफा 1100 करोड़ रुपये रहा है। ऑडी, मर्सिडीज, वॉल्वो, फोक्स वैगन कंपनी के ग्राहक है। टोयोटा, फोर्ड और जीएम जैसे ग्राहक भी है। दुनिया में ब्रांड मजबूत करने के लिए कंपनी ने मैनचेस्टर यूनाइटेड से करार किया है।
कंपनी के बोर्ड में नामचीन लोग है। विनोद राय, निमेष कंपानी, एके पुरवार और जनरल बिक्रम सिंह कंपनी के बोर्ड में शामिल है। कंपनी का मार्केट कैप 9800 करोड़ रुपये है और प्रोमोटर के पास कंपनी का 44.15 फीसदी हिस्सा है। वहीं एफपीआई के पास 32.92 फीसदी, एमएफ के पास 646 फीसदी हिस्सा है। कंपनी हंगरी और भारत में क्षमता विस्तार कर रही है। अभी 90 फीसदी क्षमता पर काम हो रहा है। कंपनी का डेट इक्विटी रेश्यो 0.3 गुना है।
कंपनी की कुल आय का 30 फीसदी हिस्सा यूरोप से आता है। कुछ दिनों से एसएपी के कारण यूरोप के कारोबार पर दबाव बढ़ा है। तीसरी तिमाही में कंपनी की आय में 17 फीसदी का उछाल आया है। रबर की कीमतों में गिरावट से कंपनी का मार्जिन सुधरते नजर आ सकता है। नोटबंदी के कारण चीन के इंपोर्ट पर दबाव बन सकता है। ट्रक और रेडियल टायर पर एंटी डंपिंग ड्यृटी लगने की संभावना है। एंटी डंपिंग ड्यूटी न लगने से चीन का फोकस अमेरिका पर बढ़ सकता है।
आज का जैकपॉट शेयर: अपोलो टायर्स
कंपनी 1972 से टायर उत्पादन और बिक्री के काम में है और देश में रेडियल टायर बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल है। ट्रक टायर मार्केट का कंपनी में 25 फीसदी हिस्सा है। कंपनी ने 2006 में दक्षिण अफ्रीका में डनलप टायर्स खरीदा है। वहीं 2009 में हालैंड की व्रेडेस्टिन बेंडेन(Vredestein Banden) नाम की कंपनी खरीदी है। कंपनी ने 2015 में हंगरी में बड़ा प्लांट लगाया है और 2016 में जर्मनी की रेफेंकॉम(Reifencom) को खरीदा है।
कंपनी के पास चार टायर ब्रांड हैं। अपोलो, दुनियाभर में बिकने वाला पॉपुलर ब्रांड है। व्रेडेस्टिन टायर का प्रीमियम ब्रांड है। कंपनी काइज़ेन, रीगल नाम के बस और ट्रक के टायर बनाती है। कंपनी के केरल, तमिलनाड़ और गुजरात में प्लांट है। वहीं यूरोप में हंगरी और हॉलैंड में भी प्लांट है। अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप और एशिया में कंपनी के सेल्स ऑफिस हैं। 100 से अधिक देशों में कंपनी के टायर बिकते हैं। भारत में कंपनी के 4900 से ज्यादा डीलर है और यूरोप में 3550 से ज्यादा डीलर है।
वित्त वर्ष 2016 में कंपनी की बिक्री 11700 करोड़ रुपये और मुनाफा 1100 करोड़ रुपये रहा है। ऑडी, मर्सिडीज, वॉल्वो, फोक्स वैगन कंपनी के ग्राहक है। टोयोटा, फोर्ड और जीएम जैसे ग्राहक भी है। दुनिया में ब्रांड मजबूत करने के लिए कंपनी ने मैनचेस्टर यूनाइटेड से करार किया है।
कंपनी के बोर्ड में नामचीन लोग है। विनोद राय, निमेष कंपानी, एके पुरवार और जनरल बिक्रम सिंह कंपनी के बोर्ड में शामिल है। कंपनी का मार्केट कैप 9800 करोड़ रुपये है और प्रोमोटर के पास कंपनी का 44.15 फीसदी हिस्सा है। वहीं एफपीआई के पास 32.92 फीसदी, एमएफ के पास 646 फीसदी हिस्सा है। कंपनी हंगरी और भारत में क्षमता विस्तार कर रही है। अभी 90 फीसदी क्षमता पर काम हो रहा है। कंपनी का डेट इक्विटी रेश्यो 0.3 गुना है।
कंपनी की कुल आय का 30 फीसदी हिस्सा यूरोप से आता है। कुछ दिनों से एसएपी के कारण यूरोप के कारोबार पर दबाव बढ़ा है। तीसरी तिमाही में कंपनी की आय में 17 फीसदी का उछाल आया है। रबर की कीमतों में गिरावट से कंपनी का मार्जिन सुधरते नजर आ सकता है। नोटबंदी के कारण चीन के इंपोर्ट पर दबाव बन सकता है। ट्रक और रेडियल टायर पर एंटी डंपिंग ड्यृटी लगने की संभावना है। एंटी डंपिंग ड्यूटी न लगने से चीन का फोकस अमेरिका पर बढ़ सकता है।
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